एक प्रयास ---------
नौ पुत्रियों के 'मेरे पिता' बेहद शांत थे , पेशे से तहसीलदार थे !
बेहद ईमानदार और साफ़-सुथरी छवि थी उनकी
हर निर्णय बड़े सोच-समझ कर लेते थे .....किसी की आलोचना बिलकुल पसंद नहीं थी , ना करते थे ना ही सुनना पसंद था .......हम कुछ कहते तो ...'हमें बड़े ही प्यार से समझाते बीबी ऐसे ना कहना चाहिए '
हमेशा समझाते थे जिंदगी की बातें , लड़ने का हौसला देते कहते थे ...
'जिंदगी की समस्या गणित की समस्या की तरह है जैसे उनका हल अवश्य होता है जिंदगी की भी हर समस्या हल हो सकती है ..........जैसे कई बार सवाल गलत हो जाता है हम भी जिंदगी में गलत निर्णय कर लेते हैं ......लेकिन गणित की तरह ही फिर से सही हल निकाल सकते हैं '
उनकी हास्य क्षमता कमाल थी ,हर बात को अपने तरीके से कहते नपे तुले शब्दों में ........
उन्हें गर्व था अपनी नौ पुत्रियों पर .......
आप लोगो ने सुना होगा अक्सर कहानी में कहा जाता है .
...'एक राजा के साथ लड़के या सात बेटी थी' ......
वो बड़े गर्व से कहते में तो राजा से भी बड़ा हूँ ......'मेरी तो नौ बेटी हैं' .........
पढने के बेहद शौक़ीन थे , खाली वक्त में पुस्तकें उनका साथी थी
घर पर एक पुस्तकालय था .....
जब भी तबादला होता घर के हिसाब से पुस्तकालय अपनी जगह बना ही लेता था ............
हमारे मित्र थे वो ........मम्मी तो किसी भी गलती पर अक्सर डांट देती लेकिन उन्होंने हमें कभी भी नहीं डांटा.....जिस नए शहर में हम जाते घर का सामान लगाते -लगाते ही वो हमें शहर से परिचित कराने निकल पड़ते थे ..........
अक्सर शाम को हम घूमने जाते और शहर की गलियों -सड़कों से हमारी दोस्ती हो जाती .........
एक समय ऐसा आया जब उनकी पोस्टिंग छोटी जगह पर हो गयी और फिर कई माह तक ऐसे ही चला तो तो हमें पढ़ाई के कारण उनसे दूर रहना पडा फिर वो माह में एक बार आते ......
ये सिलसिला उनके सेवा निवृत्त होने तक चला ..............
प्रशस्ति पत्र----
जब भी वो घर आते आते इतनी बातें इकट्ठी कर लाते अपने इलाके की , ग्रामीणों की बातें , अपने अंदाज़ में सुनाते ..बड़ा मजा आता था ..........
नए-नए अनुभव सुनाते ......हमारी बातें पूछते .....और कुछ दिन रुक चले जाते थे ...
हमारा और उनका बड़ा अच्छा ताल -मेल था ......हमेशा हम पर भरोसा दिखाते .....
.कई बार परिवार की दकियानूसी बातें और विचार सामने आते तो परिवार के खिलाफ जाकर हमारे हित में निर्णय लेते थे ..कई बार ऐसा हुआ .........जब बड़ी बहन के कालेज जाने की बात हुई ..........
कभी किसी काम को मना नहीं किया ........अपने दायरे में रह कर चाहे जो करो ................
बहुत दिया , बहुत किया हमारे लिए !!.........
और ईश्वर ने जब एक झटके से उन्हें हमसे छीना तो लगा जिंदगी रूक गयी ....:(........
लेकिन कहाँ रूकती है जिंदगी ..........???
समय के साथ हम भी आगे बढ़ते गए ...........
उनकी म्रत्यु के कई साल बाद उनकी 'मामी' यानी मेरी दादी हमारे घर आई तो बोली रानी किसका नाम है ?
मैंने कहा मेरा तो बोली सुरेश लल्ला (मेरे पिता जी )कहते थे मुझे रानी बहुत अच्छी लगती है ......में ये बात बहुत अच्छी तरह जानती थी .लेकिन उनके मुह से ये बात सुन कर मेरे आंसू ही नहीं रुके .......:(
बहुत कुछ है दिल में ..........बहुत सी यादें हैं .........उन यादों को यहाँ कैसे समा सकते हैं ...?
..लेकिन उन्हें नमन करते हुए श्रधांजलि देते हुए एक संस्मरण लिख दिया ......
हम सब आपको कभी नहीं भूल सकते पिताजी .............
आप बहुत -बहुत अच्छे थे पिताजी .......वैसे तो आप हमेशा हमारे साथ हैं
लेकिन पितृ दिवस पर हम सब का सादर नमन ..........
नौ पुत्रियों के 'मेरे पिता' बेहद शांत थे , पेशे से तहसीलदार थे !
बेहद ईमानदार और साफ़-सुथरी छवि थी उनकी
हर निर्णय बड़े सोच-समझ कर लेते थे .....किसी की आलोचना बिलकुल पसंद नहीं थी , ना करते थे ना ही सुनना पसंद था .......हम कुछ कहते तो ...'हमें बड़े ही प्यार से समझाते बीबी ऐसे ना कहना चाहिए '
हमेशा समझाते थे जिंदगी की बातें , लड़ने का हौसला देते कहते थे ...
'जिंदगी की समस्या गणित की समस्या की तरह है जैसे उनका हल अवश्य होता है जिंदगी की भी हर समस्या हल हो सकती है ..........जैसे कई बार सवाल गलत हो जाता है हम भी जिंदगी में गलत निर्णय कर लेते हैं ......लेकिन गणित की तरह ही फिर से सही हल निकाल सकते हैं '
उनकी हास्य क्षमता कमाल थी ,हर बात को अपने तरीके से कहते नपे तुले शब्दों में ........
उन्हें गर्व था अपनी नौ पुत्रियों पर .......
आप लोगो ने सुना होगा अक्सर कहानी में कहा जाता है .
...'एक राजा के साथ लड़के या सात बेटी थी' ......
वो बड़े गर्व से कहते में तो राजा से भी बड़ा हूँ ......'मेरी तो नौ बेटी हैं' .........
पढने के बेहद शौक़ीन थे , खाली वक्त में पुस्तकें उनका साथी थी
घर पर एक पुस्तकालय था .....
जब भी तबादला होता घर के हिसाब से पुस्तकालय अपनी जगह बना ही लेता था ............
हमारे मित्र थे वो ........मम्मी तो किसी भी गलती पर अक्सर डांट देती लेकिन उन्होंने हमें कभी भी नहीं डांटा.....जिस नए शहर में हम जाते घर का सामान लगाते -लगाते ही वो हमें शहर से परिचित कराने निकल पड़ते थे ..........
अक्सर शाम को हम घूमने जाते और शहर की गलियों -सड़कों से हमारी दोस्ती हो जाती .........
एक समय ऐसा आया जब उनकी पोस्टिंग छोटी जगह पर हो गयी और फिर कई माह तक ऐसे ही चला तो तो हमें पढ़ाई के कारण उनसे दूर रहना पडा फिर वो माह में एक बार आते ......
ये सिलसिला उनके सेवा निवृत्त होने तक चला ..............
प्रशस्ति पत्र----
जब भी वो घर आते आते इतनी बातें इकट्ठी कर लाते अपने इलाके की , ग्रामीणों की बातें , अपने अंदाज़ में सुनाते ..बड़ा मजा आता था ..........
नए-नए अनुभव सुनाते ......हमारी बातें पूछते .....और कुछ दिन रुक चले जाते थे ...
हमारा और उनका बड़ा अच्छा ताल -मेल था ......हमेशा हम पर भरोसा दिखाते .....
.कई बार परिवार की दकियानूसी बातें और विचार सामने आते तो परिवार के खिलाफ जाकर हमारे हित में निर्णय लेते थे ..कई बार ऐसा हुआ .........जब बड़ी बहन के कालेज जाने की बात हुई ..........
कभी किसी काम को मना नहीं किया ........अपने दायरे में रह कर चाहे जो करो ................
बहुत दिया , बहुत किया हमारे लिए !!.........
और ईश्वर ने जब एक झटके से उन्हें हमसे छीना तो लगा जिंदगी रूक गयी ....:(........
लेकिन कहाँ रूकती है जिंदगी ..........???
समय के साथ हम भी आगे बढ़ते गए ...........
उनकी म्रत्यु के कई साल बाद उनकी 'मामी' यानी मेरी दादी हमारे घर आई तो बोली रानी किसका नाम है ?
मैंने कहा मेरा तो बोली सुरेश लल्ला (मेरे पिता जी )कहते थे मुझे रानी बहुत अच्छी लगती है ......में ये बात बहुत अच्छी तरह जानती थी .लेकिन उनके मुह से ये बात सुन कर मेरे आंसू ही नहीं रुके .......:(
बहुत कुछ है दिल में ..........बहुत सी यादें हैं .........उन यादों को यहाँ कैसे समा सकते हैं ...?
..लेकिन उन्हें नमन करते हुए श्रधांजलि देते हुए एक संस्मरण लिख दिया ......
हम सब आपको कभी नहीं भूल सकते पिताजी .............
आप बहुत -बहुत अच्छे थे पिताजी .......वैसे तो आप हमेशा हमारे साथ हैं
लेकिन पितृ दिवस पर हम सब का सादर नमन ..........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार शास्त्री जी :)
Deleteपितृ दिवस पर यादें साझा करने के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteआभार वाणभटट जी :)
Deleteयह यादें ही जीवन का संबल हैं...
ReplyDeleteसच कहा आपने ......आभार आपका
Deleteunki yadein aur aashish hmesha sath rhkar takat dete hain
ReplyDeleteजी स्मिता जी ...आभारी हूँ
Deletepita ji ko sadar naman .....
ReplyDelete:)
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