एक प्रयास ---------
दशहरा बनाम राष्ट्रमंडल बैटन रिले रेस ----------!!!
आज़ादी का दम भरने वाले भारतीयों के लिए १९४७ से पहले वाले
आकाओं (अंगेजों) का पैगाम ......!!!!
स्काटलैंड के ग्लासगो शहर में 23 जुलाई से होने वाले वर्ष 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय नौ अक्टूबर को लंदन के बकिंघम पैलेस में बेटन रिले को लांच करेंगी. इसके बाद इसका पहला पड़ाव भारत ही रखा गया है.
भारत के बाद बेटन को 16 अक्टूबर को ढाका पहुंचना है.
हमारे यहाँ उस दिन दशहरा है .........क्या करें समझ से बाहर है ???
बड़ा ही लाचार अनुभव कर रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे ....!!!!
और सबसे ज्यादा अपमानजनक बात ये है कि इस कार्यक्रम को तय करते समय ना ही भारत को शामिल किया गया और ना ही पूछा गया बस फैसला लिया और थोप दिया ........
जानते हैं मन से तो आज भी हमारे गुलाम हैं वो ............
और ये भी मालूम है इस देश में कोई विरोध नहीं करेगा !!!
अगर वो अपनी श्रेष्ठ मानसिकता से घिरे हैं तो हम भी अपनी दासता से कहाँ आज़ाद हो पाए ..........!!!
क्यों हम आज भी राष्ट्रमंडल खेलों का भागीदार बने हैं ........???
क्यों नहीं नाम वापस लेते कितने ही देश अपने स्वाभिमान के साथ अलग हो गए हैं ...तो हम क्यों अभी तक अपनी गुलाम मानसिकता से अलग नहीं हो पा रहे हैं ......??
आश्चर्य की बात है 66 साल बाद भी १९४७ से पहले की सोच से अलग नहीं हो सके ....आखिर कितनी पीढ़ी इस दासता को झेलेंगी ...??????
हालंकि भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के कार्यवाहक अध्यक्ष वीके मल्होत्रा ने ब्रिटेन स्थित कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के मुख्यालय को चिट्ठी लिखकर बेटन के भारत में पड़ाव संबंधी चिंताओं से अवगत कराया है.
पर माना जा रहा है कि ब्रिटेन स्थित कामनवेल्थ गेम्स फेडरेशन
शायद ही इस प्रोग्राम में कोई तब्दीली करे क्योंकि उसने बेटन रिले के समूचे कायर्क्रम को अंतिम रूप देकर संबंधित देशों को सूचित भी कर दिया है.
इसके मद्देनजर व्यवस्थाएं भी हो चुकी हैं जिन्हें बदलना अब उसके लिए कठिन होगा.
अगर ऐसा होता है तो इससे अपमान जनक बात नहीं हो सकती ............
लेकिन जब तक अपना सम्मान करना नहीं सीखेंगे दूसरा तो आपको हेय द्रष्टि से ही देखेगा
क्या भारत की नियति यही है ....??......
बड़ा सवाल कब जागेगा भारत स्वाभिमान ..????????
आज़ादी का दम भरने वाले भारतीयों के लिए १९४७ से पहले वाले
आकाओं (अंगेजों) का पैगाम ......!!!!
स्काटलैंड के ग्लासगो शहर में 23 जुलाई से होने वाले वर्ष 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय नौ अक्टूबर को लंदन के बकिंघम पैलेस में बेटन रिले को लांच करेंगी. इसके बाद इसका पहला पड़ाव भारत ही रखा गया है.
भारत के बाद बेटन को 16 अक्टूबर को ढाका पहुंचना है.
हमारे यहाँ उस दिन दशहरा है .........क्या करें समझ से बाहर है ???
बड़ा ही लाचार अनुभव कर रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे ....!!!!
और सबसे ज्यादा अपमानजनक बात ये है कि इस कार्यक्रम को तय करते समय ना ही भारत को शामिल किया गया और ना ही पूछा गया बस फैसला लिया और थोप दिया ........
जानते हैं मन से तो आज भी हमारे गुलाम हैं वो ............
और ये भी मालूम है इस देश में कोई विरोध नहीं करेगा !!!
अगर वो अपनी श्रेष्ठ मानसिकता से घिरे हैं तो हम भी अपनी दासता से कहाँ आज़ाद हो पाए ..........!!!
क्यों हम आज भी राष्ट्रमंडल खेलों का भागीदार बने हैं ........???
क्यों नहीं नाम वापस लेते कितने ही देश अपने स्वाभिमान के साथ अलग हो गए हैं ...तो हम क्यों अभी तक अपनी गुलाम मानसिकता से अलग नहीं हो पा रहे हैं ......??
आश्चर्य की बात है 66 साल बाद भी १९४७ से पहले की सोच से अलग नहीं हो सके ....आखिर कितनी पीढ़ी इस दासता को झेलेंगी ...??????
हालंकि भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के कार्यवाहक अध्यक्ष वीके मल्होत्रा ने ब्रिटेन स्थित कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के मुख्यालय को चिट्ठी लिखकर बेटन के भारत में पड़ाव संबंधी चिंताओं से अवगत कराया है.
पर माना जा रहा है कि ब्रिटेन स्थित कामनवेल्थ गेम्स फेडरेशन
शायद ही इस प्रोग्राम में कोई तब्दीली करे क्योंकि उसने बेटन रिले के समूचे कायर्क्रम को अंतिम रूप देकर संबंधित देशों को सूचित भी कर दिया है.
इसके मद्देनजर व्यवस्थाएं भी हो चुकी हैं जिन्हें बदलना अब उसके लिए कठिन होगा.
अगर ऐसा होता है तो इससे अपमान जनक बात नहीं हो सकती ............
लेकिन जब तक अपना सम्मान करना नहीं सीखेंगे दूसरा तो आपको हेय द्रष्टि से ही देखेगा
क्या भारत की नियति यही है ....??......
बड़ा सवाल कब जागेगा भारत स्वाभिमान ..????????
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (07-10-2013) नवरात्र गुज़ारिश : चर्चामंच 1391 में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'