Friday, 18 October 2013

यादोँ के झरोँखोँ से-

एक प्रयास -------

 आज विज्ञान ने चंदा की सच्चाई तक तो पहुँचा दिया है लेकिन भावनाओँ से जुड़े चंदा मामा आसमान से विलुप्त हो चुके हैँ , 

न तो मामा अब दूर रहे और न ही अब पुये पकते है ! आज शरद पूर्णिमा के दिन कुछ यादोँ ने घेर लिया -- 

शाम को चिड़वे की खीर बना कर माता श्री धवल चाँदनी मेँ रखती थीँ और भगवानजी भी श्वेत वस्त्र धारण कर चाँदनी का लुत्फ उठाते थे ,





हम सब आँगन मेँ चटाई बिछा कर चाँद की रोशनी मेँ सुई पिरोया करते थे , 
बार-बार धागा निकाला और फिर पिरोया , कोई 50 , कोई 70 बार और कोई 100 बार , होड़ लगी रहती थी आगे निकलने की ॥ 

...........कहते थे इससे आँखोँ की रोशनी तेज़ होती है  
...........................आज ना चाँद और न ही चाँदनी , क्या दिन थे


शरद पूर्णिमा के अवसर पर सभी मित्रोँ को शुभकामनायेँ ।

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