Saturday, 2 November 2013

एक संस्मरण

एक प्रयास ----


आज जब दीवाली नज़दीक आ गयी है तो  मुझे बचपन की एक घटना 

याद आ रही है

कई दिन पहले से पटाखे शुरू कर देते थे बड़ा उत्साह रहता था

धनतेरस पर बाज़ार जाना और खूब खरीदारी करना | पूजा का सामान तो

 माता पिता के लिए होता था , हमें तो झालर , कंदील या सजावट का

 सामान भाता था ...पटाखे  भी खूब लुभाते थे

नरक चौदष को विशेष सफाई अभियान चलता था और और शाम को

 पिता नरकासुर का पुतला जलाने के लिए हमारे साथ खड़े होते ..जो 


गली में ही सब बच्चों के शोर गुल के बीच जलता था


जिसे बनाने के लिए पिता का पूरा सहयोग रहता ......खूब हल्ला -गुल्ला 

मचाते दशहरे का आनंद उठाते सब बच्चे |....एक बार नरक चतुर्दर्शी  

को सफाई में लगे थे तो मेरा मौसेरा भाई जो वहीँ रहता था ...कुछ पटाखे

 हाथ  में लिए चला आया ...मैंने बीच में ही अपना काम रोका और उसके

 साथ बाहर आ गयी ....पटाखे ज़रूर चलाते थे पर कभी भी डिब्बा आदि

 उस पर नहीं रखते थे. सुतली वाले बम ३ या ४ रहे होंगे ..कुछ जमा 

नहीं मामला .........मैंने उस को पैसे दिए कहा वो थोड़े बम खरीद लाये

उसने शर्त रखी कि अगर डिब्बा ऊपर रखने दिया जाएगा तो ही लाकर 

 देगा ...जिसे मैंने मान लिया ....वो सुतली बम लाया ....हम फिर से

 बाहर आ गए और भी कई बच्चे आ कर देखने लगे .....डिब्बा तो नहीं

मिला .....एक टूटा हुआ कप रखा था ...मैंने  वही दे दिया...और सब

 बच्चो को हटाने लगी ....वो तो सब बच गए ....कप के टुकड़े जो उछले

 ...तो एक टुकडा मेरी गर्दन में आकर लगा ....एक सेकिंड के लिए

 ....सन्नाटा और अन्धेरा मुझे कुछ समझ नहीं आया 

अचानक कुछ दर्द अनुभव हुआ ...देखा गले पर कप का टुकडा झटके  

से लगा था और खून बह रहा था 


तुरंत डाक्टर के पास लेजाया गया


आठ टाँके लगे .....और डाक्टर साहब बोले ..गले के .बीच में नहीं लगा 


वरना अभी हैप्पी दीवाली हो जाती 


आज भी उस दीवाली कि देंन मेरी गरदन पर है 

बीस दिन तक बिस्तर पर ही रहना पड़ा........दीवाली का मज़ा भी मेरा 

ही नहीं सब का किरकिरा हो गया .......भाई भी अपराधी महसूस कर


 रहा था.......उस के बाद से कम और सावधानी से चलाते रहे

अब तो बड़े हो गए हैं ...मगर हमारे बच्चे हमारी जगह आ गए हैं .......

ये घटना आज याद आ गयी ....मेरा  आप सबके लिए सुझाव है 

.......जितने भी पटाखे चलायें ...सावधानी से......और...बच्चों किसी  

बड़े की अगुआई में ही चलाना.

और आप बड़े लोग भी ....बच्चों को अकेला ना छोड़े.

अगर बिलकुल ना चलायें तो बहुत ही अच्छा है


पर बच्चों के लिए शगुन होना ज़रूरी है 


लेकिन कम और सुरक्षित पटाखे चलायें


दीवाली का त्यौहार आप सब के लिए शुभ हो सुरक्षित हो 


.............शुभकामनाओं के साथ 


2 comments:

  1. रोचक संस्मरण.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. दीपोत्‍सव की शुभकामनाएं

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