Sunday, 14 July 2013

टेलीग्राम: 1857 का विद्रोह 'दबाने' वाले की मौत

एक प्रयास ---------
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तार जैसे कारगर हथियार की वजह से अंग्रेज़ों को 1857 के विद्रोह को दबाने में काफ़ी मदद मिली.
जब टेलीग्राम की सुविधा शुरु हुई थी तो भारत में लोगों को इसकी अहमियत पता नहीं थी, लेकिन 1857 के ग़दर के दौरान और उसके बाद से लेकर आज तक तार सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रहा है.
क्लिक करेंतार ने लोगों को जोड़े भी रखा और यह आतंक का भी पर्याय बना रहा.शुरुआती दिनों में ईस्ट इंडिया कंपनी ने तार का इस्तेमाल अपने सिपाहियों को ख़बर करने के लिए किया. फिर मौत की ख़बर देने के लिए इनका इस्तेमाल होता रहा. लंबे वक़्त तक ये तार और बैरंग चिट्ठियां आने का मतलब यही आतंक था.
भारतीय डाक-तार सेवा के इतिहास पर शोध करने वाले अरविंद कुमार सिंह बताते हैं, ‘1857 के विद्रोह के वक़्त अंग्रेज़ों के टेलीग्राफ़ विभाग की असल परीक्षा हुई, जब विद्रोहियों ने अंग्रेज़ों को जगह-जगह मात देनी शुरू कर दी थी. 
अंग्रेज़ों के लिए तार ऐसा सहारा था जिसके ज़रिए वो सेना की मौजूदगी, विद्रोह की ख़बरें, रसद की सूचनाएं और अपनी व्यूहरचना सैकड़ों मील दूर बैठे अपने कमांडरों के साथ साझा कर सकते थे.’

हिटलिस्ट में थे टेलीग्राफ़ ऑफ़िस-----

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि तार की वजह से बग़ावत दबाने में अंग्रेज़ों को काफ़ी मदद मिली.
 एक तरफ़ विद्रोहियों के पास ख़बरें भेजने के लिए हरकारे थे, 
दूसरी तरफ़ अंग्रेजों के पास बंदूक़ों के अलावा सबसे बड़ा हथियार था- तार, 
जो मिनटों में सैकड़ों मील की दूरी तय करता था. इस वजह से अंग्रेज़ों का टेलीग्राफ़ विभाग बाग़ियों की हिट लिस्ट में आ गया

‘रेल से पहले आया था तार’---------------

1849 तक भारत में एक किलोमीटर रेलवे लाइन तक नहीं बिछी थी. 1857 के बाद रेलवे लाइन बिछाने पर ब्रिटिश सरकार ने पूरी तरह ध्यान देना शुरू किया. इसके बाद 1853 में पहली बार बंबई (मौजूदा मुंबई) से ठाणे तक पहली ट्रेन चली.
सन 1865 के बाद देश में लंबी दूरियों को रेल से जोड़ना शुरू किया गया लेकिन तार उससे पहले ही अपना काम शुरू कर चुका था.
अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, 'भारत में रेलों के विस्तार से पहले ही तार का आगमन हो चुका था. इसने उस वक़्त समाज को नज़दीक किया और उसके एकीकरण का काम किया. इसके अलावा इसका सबसे बड़ा फ़ायदा अंग्रेज़ों को अपना नागरिक और सैन्य प्रशासन मज़बूत करने में मिला.'
ख़बरें 10 दिन नहीं, 10 मिनट में पहुंचीं’--------
मगर तार के इस्तेमाल के बाद उन्हें उसी दिन छापना मुमकिन हो पाया. इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने अख़बारों को ख़ास किस्म के कार्ड मुहैया कराए थे.भारतीय मीडिया के लिए तार एक वरदान ही था. 
भारत में जब अख़बारों की शुरुआत हुई तो उस वक़्त देश के किसी हिस्से में होने वाली घटना की ख़बरें एक हफ़्ते या 10 दिन बाद तक अख़बारों में जगह हासिल कर पाया करती थीं.

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‘1882 में इनलैंड प्रेस टेलीग्राम क्रैडिट कार्ड शुरू हुए. इनसे छोटे-बड़े सभी अख़बारों को काफ़ी मदद मिली. संवाददाता मुफ़्त में अपनी ख़बरें तार के ज़रिए भेज सकते थे. 
तार विभाग में प्रेस के लिए कमरे बनाए गए. इसने ख़बरों को लोगों तक जल्द से जल्द पहुंचाने में योगदान दिया. यह क्रांतिकारी हथियार था.’
रेडियो को भी समाचार टेलीग्राम से मिलते थे. तब ख़बरों के प्रति ललक पैदा हुई. मगर इसका उलटा असर भी पड़ा.
अरविंद कुमार सिंह ने बताया, "तार की वजह से ही अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ख़बरें भी तेज़ी से अख़बारों के पन्नों पर आने लगीं. यह बात भी कही गई कि ये सुविधा बंद कर दी जाए.
 मद्रास कूरियर अख़बार पर सरकार ने बंदिशें लगाने की कोशिश भी की, लेकिन बंगाल असेंबली की मीटिंग में इसका जमकर विरोध हुआ और इसे देखते हुए इनलैंड टेलीग्राम पर रोक नहीं लगाई जा सकी."
भारत में तार अब इतिहास का हिस्सा बनने जा रहा है. हो सकता है कि ईमेल, मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट मैसेंजर की दुनिया में पली-बढ़ी पीढ़ी इसके लंबे इतिहास और अहमियत को भूल ही जाए.



  • टेलीग्राम 162 साल बूढ़ा होकर मर रहा है. ब्रिटिश भारत के इतिहास के तार, तार से जुड़े हैं. इनमें दर्ज है बग़ावत, मुल्क़ के हक़ में हुए फ़ैसले, अंग्रेज़ी महत्वाकांक्षाएं और ख़्वाब, कुचक्र और ख़ून से सनी कहानियां और आज़ाद हिंदुस्तान की तमन्नाएं.जाने योग्य नहीं है.

3 comments:

  1. बहुत ही विस्तारित जानकारी प्राप्त हुई, पर अब तार गुजरे जमाने की याद भर रह जायेगा.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (15-07-2013) को आपकी गुज़ारिश : चर्चा मंच 1307 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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