एक प्रयास ---------
आज उत्तराखण्ड में आये संकट ने मुझे भी एक ऐसी ही बीती घडी याद दिला दी
छोटी थी में पर याद है परेशानी में घिरे कुछ चेहरे
अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए प्रकृति मित्र नहीं रहती है
क्यों कि मौसम भी बरसात का होता है | आज तो फिर भी बहुत सुविधा हैं लेकिन
1969 में अमरनाथ की यात्रा बहुत कठिन और बड़ी ही दुर्गम थी
तब हम लोग नकुड (सहारनपुर) में रहते थे वहां से बस गयी थी तो मेरी दादी भी गयी थी करीब २०-२५ जानकार लोग थे ख़ुशी -ख़ुशी सब विदा हुए लेकिन जल्द ही ये ख़ुशी काफूर हो गयी
जब अचानक पता चला बर्फीला तूफ़ान आया है और सब लोग बीच रास्ते में ही कहीं फंस गए थे अमरनाथ पहुँच ही नही पाए ..........तब ये समाचार रेडियो पर सुना था ..............ना फोन थे ना TV.......ना ही कोइ और माध्यम ,
मम्मी -पिताजी बेहद चिंतित रहते थे बस इतना ही याद है
जिनके लोग गए थे सब बेहद परेशान रहते थे क्या करे कहाँ जाएँ ..????.........
मुझे याद है कई दिन ऐसे ही कटे थे ,कौन कहाँ हैं ..!!
कैसा है कुछ पता नही था
आस-पास के भी सभी लोग इकट्ठे होकर हर समय रेडियो सुनते रहते थे
और कई दिन बाद सरकारी हेलिकोप्टर से वापस आई अपनी यात्रा आधी -अधूरी छोड़ कर .............जो फिर कभी पूरी नहीं कर पायी .........और कुछ ख़ास याद नहीं.....हाँ उनके लाये उपहार याद हैं अन्य कई चीज़ों के साथ कांगड़ी और मीठे नरम बब्बूगोसे ..............................समझ सकती हूँ यात्रियों के परिजन घर बैठे कैसे आकुल हो रहे होंगे ...
कैसे समय काट रहे होंगे ......अब जो जिस हाल में है कम से कम घर तो आये ....
आज उत्तराखण्ड में आये संकट ने मुझे भी एक ऐसी ही बीती घडी याद दिला दी
छोटी थी में पर याद है परेशानी में घिरे कुछ चेहरे
अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए प्रकृति मित्र नहीं रहती है
क्यों कि मौसम भी बरसात का होता है | आज तो फिर भी बहुत सुविधा हैं लेकिन
1969 में अमरनाथ की यात्रा बहुत कठिन और बड़ी ही दुर्गम थी
तब हम लोग नकुड (सहारनपुर) में रहते थे वहां से बस गयी थी तो मेरी दादी भी गयी थी करीब २०-२५ जानकार लोग थे ख़ुशी -ख़ुशी सब विदा हुए लेकिन जल्द ही ये ख़ुशी काफूर हो गयी
जब अचानक पता चला बर्फीला तूफ़ान आया है और सब लोग बीच रास्ते में ही कहीं फंस गए थे अमरनाथ पहुँच ही नही पाए ..........तब ये समाचार रेडियो पर सुना था ..............ना फोन थे ना TV.......ना ही कोइ और माध्यम ,
मम्मी -पिताजी बेहद चिंतित रहते थे बस इतना ही याद है
जिनके लोग गए थे सब बेहद परेशान रहते थे क्या करे कहाँ जाएँ ..????.........
मुझे याद है कई दिन ऐसे ही कटे थे ,कौन कहाँ हैं ..!!
कैसा है कुछ पता नही था
आस-पास के भी सभी लोग इकट्ठे होकर हर समय रेडियो सुनते रहते थे
और कई दिन बाद सरकारी हेलिकोप्टर से वापस आई अपनी यात्रा आधी -अधूरी छोड़ कर .............जो फिर कभी पूरी नहीं कर पायी .........और कुछ ख़ास याद नहीं.....हाँ उनके लाये उपहार याद हैं अन्य कई चीज़ों के साथ कांगड़ी और मीठे नरम बब्बूगोसे ..............................समझ सकती हूँ यात्रियों के परिजन घर बैठे कैसे आकुल हो रहे होंगे ...
कैसे समय काट रहे होंगे ......अब जो जिस हाल में है कम से कम घर तो आये ....
जिन्होने इस आपदा को भोगा है उनसे ज्यादा अच्छी तरह से इस पीडा को कौन समझ सकता है, ईश्वर करे सब सकुशल लौट आयें, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामारम.
राम -राम ताऊ
ReplyDeleteसच कहा आपने .......बस जैसे भी हो सब अपने घर आयें .......
हमारा मन तो उस भयावह आपदा के बारे में कल्पना करने भर से काँप जाता है और जिनके परिवारजन वहाँ फंसे हुए हैं या फिर लापता है उनका हाल क्या होगा उसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है और यही कहा जा सकता है कि दयानिधान उन पर कृपा बनाए रखना !!
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