एक प्रयास ---------
आडवाणी जी की बात करें तो
उनका सपना रहा देश पर राज करना जो समय ने पूरा नही होने दियालेकिन लालसा बनी रही कुर्सी की जो आज भी बरकरार है
लेकिन अब समय आडवाणी जी के भी
सोचने का नही है क्या ......
क्यों इतनी जिद ???
अपने बोये पेड़ के फल सबको खाने को नही मिलते ये तो वो अच्छी तरह जानते हैं .........
इस उम्र में बच्चा बन जाना सुना था आज उन्होंने सार्थक कर दिया
और ये पहली बार नही है ...
बाजपेयी के समय भी इनका यही रवैया था हाँ और फर्क ये है
कि अटलजी के सामने चली नहीं...तब भी उपप्रधान मंत्री बन कर माने थे
समय -समय पर सबको सत्ता छोडनी ही पड़ती है , परिवर्तन समय की मांग है सब जानते हैं
..............थोड़ा बडप्पन दिखाना चाहिए उन्हें
...............बड़े भी अपना सम्मान बनाए रहे यही उचित है .......
उनके विरोध में कोइ नही है .........और ये मान गए तो सब मान जायेंगे ये भी पक्का है .
सम्मान उनका सभी करते हैं और कर रहे हैं ..........
लेकिन वो स्वयं ही मौक़ा दे रहे हैं हंसी उड़ाने का ................... स्वयं तो उपहास का पात्र बने खड़े ही हैं पार्टी की छवि भी धूमिल कर रहे हैं हैं ...........
मुझे उनका ये कदम गलत लगता है ......
सबके सामने ठीकरा उनकी जिद ने फोड़ा वरना अन्दर भी बात हो सकती थी.....
नाराज़ रहते .....जो चाहे कहते लेकिन सबको मौक़ा तो ना देते ............और अब तो भगवान् ही मालिक है ...............वन्दे मातरम
आडवाणी जी की बात करें तो
उनका सपना रहा देश पर राज करना जो समय ने पूरा नही होने दियालेकिन लालसा बनी रही कुर्सी की जो आज भी बरकरार है
लेकिन अब समय आडवाणी जी के भी
सोचने का नही है क्या ......
क्यों इतनी जिद ???
अपने बोये पेड़ के फल सबको खाने को नही मिलते ये तो वो अच्छी तरह जानते हैं .........
इस उम्र में बच्चा बन जाना सुना था आज उन्होंने सार्थक कर दिया
और ये पहली बार नही है ...
बाजपेयी के समय भी इनका यही रवैया था हाँ और फर्क ये है
कि अटलजी के सामने चली नहीं...तब भी उपप्रधान मंत्री बन कर माने थे
समय -समय पर सबको सत्ता छोडनी ही पड़ती है , परिवर्तन समय की मांग है सब जानते हैं
..............थोड़ा बडप्पन दिखाना चाहिए उन्हें
...............बड़े भी अपना सम्मान बनाए रहे यही उचित है .......
उनके विरोध में कोइ नही है .........और ये मान गए तो सब मान जायेंगे ये भी पक्का है .
सम्मान उनका सभी करते हैं और कर रहे हैं ..........
लेकिन वो स्वयं ही मौक़ा दे रहे हैं हंसी उड़ाने का ................... स्वयं तो उपहास का पात्र बने खड़े ही हैं पार्टी की छवि भी धूमिल कर रहे हैं हैं ...........
मुझे उनका ये कदम गलत लगता है ......
सबके सामने ठीकरा उनकी जिद ने फोड़ा वरना अन्दर भी बात हो सकती थी.....
नाराज़ रहते .....जो चाहे कहते लेकिन सबको मौक़ा तो ना देते ............और अब तो भगवान् ही मालिक है ...............वन्दे मातरम
समय के हिसाब से आदमी को अपनी इज्जत खुद ही बचा लेनी चाहिये, ऐसा ही घरों में भी होता है जहां समझदार बुजुर्ग अपनी मर्जी से छोटों को मौका देकर अपना मान सम्मान बनाये रखते हैं, बिल्कुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
परिवर्तन समय की मांग है और ज़रूरी नहीसबको पसंद आये लेकिन समय के साथ तो चलना ही होगा .........
Deleteराम-राम ताऊ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार शास्त्री जी
Deleteलालसाओं और महत्वाकांक्षाओं का नतीजा है ये.....
ReplyDeleteअनु
बिलकुल सही कहा आपने और लालच हमेशा बुरा ही होता है
Deleteदुआ चंदन
ReplyDeleteबस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
सच कहा
Deleteसमय परिवर्तनशील है ,परिवर्तन को स्वीकार करना ही बुद्दिमानी है.
ReplyDeletelatest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
जी कालीपद जी ......
Deletekab tak badappan deekhayen bechare :)
ReplyDeleteबड़प्पन तो बड़े दिखाएँगे जी
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