Saturday, 11 January 2014

# काश ऐसा होता ...!!!

एक प्रयास ---------
 आरम्भ से ही मन में था कि कलम के माध्यम से कुछ करूँ..!!
थोडा बहुत चल जाती थी .........लेकिन शायद विश्वास कुछ कम था अपने पर .....

जब कालेज मैगजीन में लगातार दो वर्ष मेरे लेख छपे
और कालेज उत्सव में मैंने कविता पढ़ी तो विश्वास बढा !!!
लगा मेरी लेखनी बहुत कुछ कहती है और इसे आगे लेकर जाउंगी ,सोच लिया था मैंने 
 सब कुछ बहुत सुविधाजनक तो नहीं था लेकिन घर से कोई विरोध नहीं था ,
बल्कि कहूँगी पूरा समर्थन प्राप्त था और इसी कड़ी में मैंने सोचा क्यों न पत्रकार बना जाए
देखते हैं क्या कर पाते हैं ....!! 

फिर खोज बीन कर 'बरेली पत्रकारिता संस्थान से' पत्रकार का कोर्स करने का निश्चय किया 
..












एडमिशन लिया गया लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही शादी हो गयी ......
और इधर -उधर के चक्कर में ये सब छूट गया .......स्वप्न पूरा ना हो सका
फिर परिस्थिति ने साथ नहीं दिया और मैं इसे पूरा नहीं कर पायी .....
हमें सब कुछ कहाँ मिलता है ......जिसके हिस्से में जो ,जितना है वही मिलेगा
कब मिलेगा ये भी निश्चित किया है इश्वर ने .......

आज ये पहचान पत्र मेरे टूटे स्वप्न का प्रतीक बन गया..
 यहाँ किसी को दोष नहीं देना चाहती, मेरी इच्छाशक्ति में ही कही  कमी रही ......
आज भी मन में पश्चाताप है ......कसक है ..........
आज ये पहचान पत्र देख फिर से उन्ही दिनों में वापस पहुँच गयी हूँ .......
काश थोडा मजबूती से सोचती और ..!!......
अडिग रहती तो हो सकता है कोई रास्ता निकल पाता

.'काश ऐसा होता' ....!! और मैं आगे बढ़ पाती .....
पर नियम है प्रकृति का  हमेशा मन चाहा नहीं हो सकता .....
लेकिन कोई बात नहीं आज अपनी बात कहने का एक मंच है मेरे पास
लोकतंत्र है .........जो चाहे लिखिए 
और साथ ही उन दिनों की बातें बांटने के लिए ढेर सारे दोस्त ..........सादर 




6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ये काश !!! ऐसा शब्द है जो हमेशा चुभता रहता है। अपने बच्चों के रूप में हमें फिर से मौका मिला है कि हम अपने काश ……को यथार्थ कर सकें। कम से कम उनको ऐसा कर सकें कि उनके जीवन में कुछ काश जैसा अफ़सोस न रहे।

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