एक प्रयास ---------
वैसे तो जय हिन्द नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष नहीं थे.
देखना यह है किसके हृदय में सबसे पहले उमड़ा ये नारा और आम भारतीयों के लिए विजय-घोष बन गया.
“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई से होती है
उनका का जन्म 15 सितम्बर 1891 को थिरूवनंतपुरम में हुआ था.
गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज में “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया.
1908 में पिल्लई आगे के अभ्यास के लिए जर्मनी चले गए.
अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की.
प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला.
22 सितम्बर 1914 के दिन “एम्डेन” नामक जर्मन जहाज से चेन्नई पर बमबारी की. पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया.
पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को बहुत प्रभावित कर गए.
इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था,
उनमें भारतीय सैनिक भी थे.
1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया.
यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया.
आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया
तब हुसैन ने”जय हिन्द” का सुझाव दिया.
अंतः 2 नवम्बर 1941 को “जय-हिन्द” फौज का युद्धघोष बन गया.
जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था.
1946 में एक चुनाव सभा में जब लोग “कॉग्रेस जिन्दाबाद” के नारे लगा रहे थे,
नेहरूजी ने लोगो से “जय हिन्द” का नारा लगाने के लिए कहा.
अब तक “वन्दे-मातरम” ही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था,
15 अगस्त 1947 को नेहरूजी ने लाल किल्ले से अपने पहले भाषण का समापन “जय हिन्द” से किया.
सभी डाकघरों को सूचना भेजी गई कि डाक टिकट चाहे जोर्ज की मुखाकृति की उपयोग में आये उस पर मुहर “जय हिन्द” की लगाई जाये.
31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही
जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा.
आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी “जय हिन्द” लिखा हुआ था.
“जय हिन्द” अमर हो गया मगर क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई इतिहास में कहीं खो गए.........“जय हिन्द”
देखना यह है किसके हृदय में सबसे पहले उमड़ा ये नारा और आम भारतीयों के लिए विजय-घोष बन गया.
“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई से होती है
उनका का जन्म 15 सितम्बर 1891 को थिरूवनंतपुरम में हुआ था.
गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज में “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया.
1908 में पिल्लई आगे के अभ्यास के लिए जर्मनी चले गए.
अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की.
प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला.
22 सितम्बर 1914 के दिन “एम्डेन” नामक जर्मन जहाज से चेन्नई पर बमबारी की. पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया.
पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को बहुत प्रभावित कर गए.
इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था,
उनमें भारतीय सैनिक भी थे.
1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया.
यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया.
आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया
तब हुसैन ने”जय हिन्द” का सुझाव दिया.
अंतः 2 नवम्बर 1941 को “जय-हिन्द” फौज का युद्धघोष बन गया.
जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था.
1946 में एक चुनाव सभा में जब लोग “कॉग्रेस जिन्दाबाद” के नारे लगा रहे थे,
नेहरूजी ने लोगो से “जय हिन्द” का नारा लगाने के लिए कहा.
अब तक “वन्दे-मातरम” ही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था,
15 अगस्त 1947 को नेहरूजी ने लाल किल्ले से अपने पहले भाषण का समापन “जय हिन्द” से किया.
सभी डाकघरों को सूचना भेजी गई कि डाक टिकट चाहे जोर्ज की मुखाकृति की उपयोग में आये उस पर मुहर “जय हिन्द” की लगाई जाये.
31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही
जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा.
आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी “जय हिन्द” लिखा हुआ था.
“जय हिन्द” अमर हो गया मगर क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई इतिहास में कहीं खो गए.........“जय हिन्द”
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