Saturday 25 January 2014

तिरंगे का निर्माण

एक प्रयास ---------
हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास भी बहुत रोचक है। 20वीं सदी में जब देश ब्रिटिश सरकार की ग़ुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब स्वतंत्रता सेनानियों को एक ध्वज की ज़रूरत महसूस हुई, क्योंकि ध्वज स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का प्रतीक रहा है। सन् 1904 में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया, जिसे बाद में सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना गया। यह ध्वज लाल और पीले रंग से बना था। पहली बार तीन रंग वाला ध्वज सन् 1906 में बंगालके बँटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए। इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, बीच में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था। केसरिया रंग पर 8 अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा था।
सन 1908 में भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता को दर्शाते हुए; हरा रंग इस्लाम के लिए और केसरिया हिन्दू और सफ़ेद ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतीक था। इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदे मातरम्लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल बने थे। 
इस ध्वज को भीकाजी कामावीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था। 
प्रथम विश्व युद्ध के समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया, क्योंकि इसे बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अपनाया गया था।

तिरंगे का विकास

सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की, 
जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बाँध दे। 
उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला 
और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया।
 वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली 
और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी, 
जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने का संकेत बने। 
पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। 
राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। 
अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। 
फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दूमुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है।

कमेटी का गठन

काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो 
सन् 1931 में 'अखिल भारतीय कांग्रेस' के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, 
जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, 
को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। 
आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए।
 इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई 
और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने 
'अखिल भारतीय कांग्रेस' के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की। 
15 अगस्त1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।

प्रथम ध्वज-----------------

1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्‍वज फ़हराया गया था। 
1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 
7 अगस्त, 1906 को 'बंगाल विभाजन' के विरोध में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) 
कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन ने फहराया था। प्रथम ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। 
ऊपर की ओर हरी पट्टी में 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे 
और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और 
चाँदबनाए गए थे व बीच की पीली पट्टी पर 'वन्दे मातरम्' लिखा गया था।
 वह तिरंगा झंडा, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 
आज से 60 साल पहले संसद के केंद्रीय कक्ष में फहराया था, 
गायब बताया जा रहा है।
द्वितीय ध्वज------------

द्वितीय ध्वज को पेरिस में भीकाजी कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह 1905 में हुआ था। ध्वजारोहण के बाद सुबह साढ़े आठ बजे इंडिया गेट पर लोगों के हुजूम की 
करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर 
भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फहराया गया था। 
यह भी पहले ध्‍वज के समान था सिवाय इसके कि 
इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था, 
किंतु सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं। 
यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।


तृतीय ध्वज


15 अगस्त की सुबह लाल क़िले में भी तिरंगा लहराया था। आज़ादी के साठ साल हो चुके हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि वे तीनों झंडे कहाँ हैं और न ही उनका पता लगाने की कोशिश की गई।


1917 में भारतीय राजनीतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। 
डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। 
इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद एक 
और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। 
बांयी और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक था। 
एक कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
आज़ादी की 60वीं सालगिरह और 1857 के विद्रोह के 
150 साल के अवसर पर समारोहों का समन्वय कर रहे 
संस्कृति मंत्रालय को भी आज़ाद भारत में फहराए गए 
पहले झंडों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। 
केन्द्रीय संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने कहा, 
स्वतंत्रता दिवस समारोह रक्षा मंत्रालय आयोजित करता है। 
उसे इसका पता लगाना चाहिए। अगर पता लग जाए तो 
उन्हें हमारे संग्रहालय में रखा जा सकता है।
संस्कृति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 
1997 में आज़ादी की 50वीं सालगिरह के 
अवसर पर इन झंडों का पता लगाने की कोशिश हुई थी। 
मंत्रालय ने झंडों का पता लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय को लिखा था। 
लेकिन कोई रेकॉर्ड नहीं होने से उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा।
संसद अभिलेखागार के निदेशक फ्रैंक क्रिस्टोफर ने बताया, 
हमारे पास संसद से जुड़े कई स्मृतिचिह्न हैं, 
लेकिन 14 अगस्त की रात को फहराया गया झंडा नहीं है। 
अगर उसका पता लग जाए तो हम उसे अपने अभिलेखागार में रखना चाहेंगे। लोकसभा के महासचिव पी. डी. टी. आचार्य का कहना है, 
कोई नहीं जानता कि सेंट्रल हॉल में पंडित नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा कहाँ है, 
क्योंकि उसका कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

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