एक प्रयास --------- नेताजी ने जब 1942 में हिटलर से मुलाकत की थी उस समय हिटलर से सारी दुनियाँ कांपती थी |उस हिटलर के समक्ष नेताजी ने बड़ी निर्भीकता के साथ उसके द्वारा लिखी गई आत्मकथा रखी जिस पर भारत के लोगो के बारे में कुछ गलत टिप्पणियाँ थी
उसको नेताजी ने हिटलर के सामने उठाया था और उससे कहा था कि आप जैसा सोचते हैं वैसा भारत में नहीं है |
आप अपनी इस पुस्तक के अगले संस्करण में इन त्रुटियों को ठीक करें |
ऐसा कहने हिम्मत वो भी एक दूसरे देश के नागरिक की और हिटलर के सामने किसी की नही हो सकती थी वो हिम्मत नेताजी ने दिखाई थी |
तो हिटलर ने नेताजी को कहा कि जर्मनी में एक शब्द होता 'फ्युरर' इसका अर्थ होता है “नेताओ का नेता” |
हिटलर ने नेताजी को खुद कहा कि तुम भारत के फ्युरर हो अर्थात भारत के नेताओं के नेता हो |
महात्मा गांधीजी को सबसे पहले राष्ट्रपिता का संबोधन 06 जुलाई 1944 को टोकियो जापान के रेडियो सन्देश में नेताजी ने दिया था |
रंगून के जुबली हाल में नेताजी ने नारा दिया था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा |
उसको नेताजी ने हिटलर के सामने उठाया था और उससे कहा था कि आप जैसा सोचते हैं वैसा भारत में नहीं है |
आप अपनी इस पुस्तक के अगले संस्करण में इन त्रुटियों को ठीक करें |
ऐसा कहने हिम्मत वो भी एक दूसरे देश के नागरिक की और हिटलर के सामने किसी की नही हो सकती थी वो हिम्मत नेताजी ने दिखाई थी |
तो हिटलर ने नेताजी को कहा कि जर्मनी में एक शब्द होता 'फ्युरर' इसका अर्थ होता है “नेताओ का नेता” |
हिटलर ने नेताजी को खुद कहा कि तुम भारत के फ्युरर हो अर्थात भारत के नेताओं के नेता हो |
1938 में जब नेता जी काँग्रेस के अध्यक्ष बने |
उसके बाद दूसरा विश्व युध्द प्रारम्भ हो गया था |
तो नेताजी ने भारत के कई नेता जैसे गांधीजी , पटेल जी ,नेहरु जी और कई नेताओं से आग्रह किया कि इस युद्ध में हम अंग्रेजो के उपर पूरी ताकत के साथ प्रहार करें | ज
बकि गांधीजी यह कहते थे कि दुश्मन जब कमजोर हो तो उस समय प्रहार करना उचित नहीं है |
नेताजी यह सोचते थे कि हमें कैसे भी करके आजादी लेनी है |
1939 में गांधीजी ने नेताजी को काँग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनाया |
पहली बार चुनाव करवाए गए और गांधीजी की और से पट्टा बी सीताराम रमया को उम्मीदवार बनाया गया तो दूसरी तरफ नेताजी खड़े हुए |
काँग्रेस के इतिहास में यह सबसे बड़ी घटना हुई कि नेताजी ने पट्टा बी सीताराम को 201 वोटो से हराकर जीत हासिल कि थी
उसके बाद गांधीजी को यह कहना पड़ा था कि यह मेरी व्यक्तिगत हार है |
अप्रेल 1939 में नेताजी ने काँग्रेस को छोड दिया |
उसके बाद अंग्रेजो को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर गिराने के लिय नेताजी ने भारत के बाहर सबसे बड़ा कार्य यह किया कि 1943 में भारत के बाहर आजाद हिंद सरकार का गठन किया और सारे अंग्रेजो को आक्रमण कारी घोषित कर दिया |
सबसे ज़्यादा बुद्धिमानी ये की कि 09 देशो से अपनी बात को मान्यता भी दिलवा दी
कई लोगों ने नेताजी के बारे में भला बुरा कहा लेकिन नेताजी ने सबका सदैव समान किया |
महात्मा गांधीजी को सबसे पहले राष्ट्रपिता का संबोधन 06 जुलाई 1944 को टोकियो जापान के रेडियो सन्देश में नेताजी ने दिया था |
रंगून के जुबली हाल में नेताजी ने नारा दिया था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा |
नेताजी ने उस समय लोगो से दान देने का आह्वान किया था ,जब यह आह्वान किया तो सभा में एक व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने उस समय अपनी एक करोड़ की सम्पति नेताजी को दान कर दी |
वो एक रंगून का मुस्लिम व्यक्ति था |
जब नेताजी ने उससे पूछा कि तुमने अपना सब कुछ दे दिया अब तुम क्या करोगे ..?
तो उसने उत्तर दिया मैं खुद आजाद हिंद सेना में भर्ती होऊंगा और मेरी पत्नी रानी लक्ष्मी बाई रेजिमेंट में भर्ती होगी तथा मेरा बेटा नेताजी की बाल सेना में कार्य करेगा |
1943-44 में जब महिलाओं को बुरी स्थिति में रखा जाता था उस समय नेताजी ने रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट की स्थापना करके माताओं और बहनों को सम्मान दिया था |
1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो खुद गांधीजी को यह कहना पड़ा था कि आज अगर नेताजी जिन्दा होते तो भारत को विभाजन नही होने देते | .........
नेताजी जी सेना हिन्दुओ और मुसलमानों को बराबर सम्मान था |
वे उनको बराबर सहयोग देते थे |
18अगस्त 1945को जब नेताजी ने अंतिम उड़ान भरी थी तो उनके साथ हबीबुर्रहमान था जो कि एक मुस्लिम व्यक्ति ही था |
आजाद हिंद सरकार का गठन किया तो नेताजी को पूरा भरोसा था कि मैं जो कार्य करा रह हूं उससे भारत को आजादी तो जल्द ही मिलने वाली है लेकिन उसके बाद भी यदि अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई व्यवस्थाएँ नहीं बदली तो हम सही मायने में आजाद नहीं हो पायेंगे |
इसके लिय नेताजी ने भारत के अलग अलग विद्वानों के दल बनाये और उनको आस्ट्रिया ,जर्मनी ,रूस .फ्रांस , युगोस्लाविया ,बुल्गेरिया व अनेक देशों की व्यवस्थाओं का अध्ययन करने के लिय भेज दिया था |
वे भारत की शिक्षा ,चिकित्सा ,अर्थ ,कृषि ,सहित अनेक व्यवस्थाओं को बदलना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि नेताजी चले गए और वे सभी व्यवस्थाएँ नहीं बदल पाई और भारत कि जनता को सही मायने में न्याय नही मिल पाया |
..जय हिन्द .....
नेताजी जी सेना हिन्दुओ और मुसलमानों को बराबर सम्मान था |
वे उनको बराबर सहयोग देते थे |
18अगस्त 1945को जब नेताजी ने अंतिम उड़ान भरी थी तो उनके साथ हबीबुर्रहमान था जो कि एक मुस्लिम व्यक्ति ही था |
आजाद हिंद सरकार का गठन किया तो नेताजी को पूरा भरोसा था कि मैं जो कार्य करा रह हूं उससे भारत को आजादी तो जल्द ही मिलने वाली है लेकिन उसके बाद भी यदि अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई व्यवस्थाएँ नहीं बदली तो हम सही मायने में आजाद नहीं हो पायेंगे |
इसके लिय नेताजी ने भारत के अलग अलग विद्वानों के दल बनाये और उनको आस्ट्रिया ,जर्मनी ,रूस .फ्रांस , युगोस्लाविया ,बुल्गेरिया व अनेक देशों की व्यवस्थाओं का अध्ययन करने के लिय भेज दिया था |
वे भारत की शिक्षा ,चिकित्सा ,अर्थ ,कृषि ,सहित अनेक व्यवस्थाओं को बदलना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि नेताजी चले गए और वे सभी व्यवस्थाएँ नहीं बदल पाई और भारत कि जनता को सही मायने में न्याय नही मिल पाया |
..जय हिन्द .....
बहुत प्रेरक प्रस्तुति...काश नेताजी अगर अपने उद्देश्य में सफल होते तो आज भारत की तस्वीर कुछ और ही होती...
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