एक प्रयास ---------
- कोलकाता में पहला ट्राम 24 फरवरी, 1873 को चली थी. सियालदह से अर्मेनियन घाट स्ट्रीट के बीच 3.8 किलोमीटर की दूरी के बीच ज़्यादा यात्रियों के नहीं मिलने से इस सेवा को उसी साल नवंबर में बंद कर दिया गया. 1880 में घोड़ा से चलने वाली ट्राम की शुरुआत हुई. 19वीं शताब्दी के अंत तक कोलकाता में 186 ट्रॉम चलने लगे थे. 30 किलोमीटर के ट्रैक पर इसे करीब एक हज़ार घोड़े खींचते थे.
- मौजूदा समय में करीब 170 ट्रामों में हर रोज क़रीब एक लाख साठ हज़ार सवारियां यात्रा करती हैं. कोलकाता ट्रामवेज कंपनी की वेबसाइट पर बताया गया है कि सवारियों की संख्या लगातार गिर रही है. हालांकि 62 सीटों वाली ट्राम काफी आरामदायक और सस्ती है. लेकिन सवारियों की शिकायत है कि ट्राम की स्पीड कम है, इसलिए यात्रा में समय अधिक लगता है.
हां ट्राम तो कोलकाता की पहचान है. कालेज जाने तक ट्राम का खूब उपयोग किया है हमने भी. समय की मांग के अनुसार इनमें भी बदलाव किया जाना चाहिये था जो नही किया गया. उचित रखरखाव और आधुनिक टेक्नोलोजी अपना कर इसे जिंदा रखा जा सकता है.
ReplyDeleteरामराम
सही कहा आपने समय -समय पर सब को रख-रखाव की आवशयकता है
Deleteराम -राम