Tuesday, 7 May 2013

अनमोल रत्न ----शत -शत नमन

राष्ट्रगान के रचयिता महाकवि स्वर्गीय रविन्द्रनाथ टैगौर की 151 वीं जयन्ती 7 मई दिन सोमवार को मनाई गई| महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर प्रथम भारतीय थे, जिन्हें वर्ष 1913 में उनके कविता संग्रह 'गीताजंलि' के अंग्रेजी अनुवाद पर साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन साहित्य, संगीत और कला की शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना जाता है। रविन्द्रनाथ टैगोर भारत माता के अनमोल रत्नों में से थे, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से देश का नाम रौशन किया। कला और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को भविष्य में भी एक धरोहर की तरह पूजा जायेगा|

आपको बता दें कि नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर एक बड़े और सही मायने में एक मुकम्मल साहित्यकार थे। उनका लंबा जीवनकाल कर्मप्रधान रहा। उनकी रचनाएं देशकाल की सीमा लांघकर वैश्विक धरातल पर चर्चित हुई। वे निरंतर इस बात के लिये प्रयत्नशील रहे कि पूर्व और पश्चिम एक दूसरे के निकट आएं और उनमें एक ऐसा मेल उत्पन्न हो, जिसके आधार पर विश्व की मानवता एक सूत्र में बंध जाए। उनके इसी दृष्टिकोण ने उन्हे विश्वकवि के रूप में प्रतिष्ठापित किया।

रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय-

रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को हुआ था| इन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार (1913) विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति है। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्र.गान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। इनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी था| उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कालेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए। उनका 1883 में मृणालिनी देवी के साथ विवाह हुआ।

बचपन से ही उनकी कविताए छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर सिमट लिए थे। उनके पिता ब्राह्म धर्म के होने के कारण वे भी ब्राह्म थे। पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया।

एक समय था जब शांतिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस वक्त गांधी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।

जीवन के अंतिम समय 7 अगस्त 1941 के कुछ समय पहले इलाज के लिए जब उन्हें शांतिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहां नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हां पुराना आलोक चला जाएगा नए का आगमन होगा।

रविन्द्र नाथ टैगोर दिल से पूरी तरह से मानवतावादी थे। वैश्विक शांति, भाईचारे और आध्यात्मवाद के लिए लगाव उनके रचनात्मक कार्यो में बखूबी झलकता है। उन्होंने धर्म में संप्रदायवाद का विरोध किया और वे विज्ञान के विध्वंसात्मक प्रयोग से भी काफी आहत थे। उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित भौतिकतावाद का विरोध किया जिसे आक्रामक वैयक्तिकतावाद से चित्रित किया जाता था। वे पहले एशियाई नागरिक थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

उनकी रुचि विभिन्न विधाओं में थी। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में यादगार लेखन कार्य किया। चाहे वे नाटक, कविताएं, उपन्यास, कहानियां या निबंध हों। इनकी रचनाओं का लगातार अनुवाद होता रहा है और इन पर जमकर टीका भी लिखी गई हैं। शिक्षा में रुचि के परिणामस्वरूप उन्होंने विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसका स्वरूप अपने आप में अद्वितीय है।
एक प्रयास ---------

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