Wednesday, 1 May 2013

मानव की मूल प्रवृत्ति...

एक प्रयास --------- January 3, 2012 

कल एक स्टेटस पढ़ा था .....तो मुझे कुछ ख़याल आ गया ..
मानव की मूल प्रवृत्ति...कितनी अपरिवर्तित  होती है ..........परिवेश बदलता है ...........कारण बदलते हैं ..........
लेकिन मूल में जो होता है कहीं न कहीं दिख ही जाता है .........
पहले औरते  लडती थी गली मोहल्लों में .....कूड़े के लिए ...
पानी के लिए ....कभी-कभी भयानक रूप धारण कर लेता था ये झगडा ......
और कहने वाले कहते थे ........मूर्ख बिना पढ़ी लिखी औरतें हैं .........अक्ल नहीं है .........इस लिए ज़रा -ज़रा सी बात पर लड़ पड़ती हैं..........
गाँव में भी कई कारण झगडे के ,ज़मीन से सम्बंधित होते थे .....
जैसे व्यक्ति खाने -पीने ,हंसने-बोलने की आदत नहीं छोड़ सकता ...
शायद ये आदत भी नहीं छोड़ सकता सबके अन्दर है ये ..
किसी के पास सुप्तावस्था  में है और कोई इसे अपनी आक्रामकता के साथ अपने हाव -भाव में ही लिए घूम रहा है 
आज समय बदला ............नालियाँ भूमिगत है  .......कूड़े की भी ऐसी व्यवस्था कि झगडे का कारण नहीं बन सकता .....
तो आज कल स्टेटस सिम्बल बन चुकी  , गाड़ियां बन गयी हैं लड़ाई, झगडे का कारण  ....
आज-कल पार्किंग पर हुए झगडे जगह -जगह दिखाई सुनाई देते हैं 
और सभ्य समाज की सभ्यता दो मिनट में शब्दों के ज़रिये धराशायी हो जाती है ....
मुह से ऐसे -ऐसे शब्द सुनाई देते हैं कि कानो को शर्म आने लगती है ................
सभ्य लोग हिंदी में झगड़ना भी अपमान की बात समझते हैं .........अंग्रेजी में झगडा होता है ..........
अपने आपको ज़्यादा सभ्य  साबित करने की कोशिश में .....
ऐसी -ऐसी गाली दी जाती हैं कि ....हिंदी में तो कोई सुने तो खून खौल जाए पर
अंग्रेजी में देने वाला शान से देता है और लेने वाला भी सम्मान पूर्वक ग्रहण करता है ............
लेने वाला इतने सम्मान से ग्रहण करता है कि देख  कर ऐसा  लगता है
जैसे मोर्चे से जीत कर लौटे सिपाही की  ताज पोशी हो रही है ...
और मंगल गीत गाये जा रहे है .....
इस लम्बे - चौड़े भाषण का मतलब ये है कि लड़ाई का कारण कोई भी हो ............
मूल प्रवृत्ति झगडा है तो वो रहेगी ही ..........
यहाँ धन्यवाद ऋतु को .जिसने कल एक स्टेटस लिखा.और मुझे उस से ये सब लिखने की प्रेरणा दी ............
और उससे भी ज़्यादा उसके पडौसियों को और उसकी कथित आंटियों को .......
जिनकी वजह से आग में घी  पडा.और देर तक .........अग्नि प्रज्वल्लित रही ............हा हा हा हा ...........
अरे - अरे  मजाक कर रही हूँ.........सच में ये सब चिंता का विषय है मित्रों ..........

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