एक प्रयास ---------
आज दस मई को आगाज़ हुआ प्रथम क्रान्ति का ...........
कई कारण थे मतभेद के --------वैचारिक , आर्थिक , राजनैतिक , एनफील्ड बन्दूक
२४ जनवरी १८५७ को कलकत्ता के निकट आगजनी की कई घटनायें हुई।
२६ फ़रवरी १८५७ को १९ वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री ने नये कारतूसों को प्रयोग करने से मना कर दिया।
रेजीमेण्ट् के अफ़सरों ने तोपखाने और घुडसवार दस्ते के साथ इसका विरोध किया पर बाद में सिपाहियों की मांग मान ली।
आज दस मई को आगाज़ हुआ प्रथम क्रान्ति का ...........
कई कारण थे मतभेद के --------वैचारिक , आर्थिक , राजनैतिक , एनफील्ड बन्दूक
विद्रोह प्रारम्भ होने के कई महीनो पहले से तनाव का वातावरण बन गया था और कई विद्रोहजनक घटनायें घटीं।
२४ जनवरी १८५७ को कलकत्ता के निकट आगजनी की कई घटनायें हुई।
२६ फ़रवरी १८५७ को १९ वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री ने नये कारतूसों को प्रयोग करने से मना कर दिया।
रेजीमेण्ट् के अफ़सरों ने तोपखाने और घुडसवार दस्ते के साथ इसका विरोध किया पर बाद में सिपाहियों की मांग मान ली।
मंगल पाण्डेय ------------
३४ वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री मे एक सिपाही थे मंगल पांडे । २९ मार्च, १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया।
जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया।
सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया।
मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया ........ परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये।
६ अप्रैल, १८५७ को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और ८ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया।
सिपाही शेख पलटु की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।
अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह दंड बहुत ही कठोर लगा।
कई ईतिहासकारों के अनुसार रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी,
असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध लौटे और विद्रोह ने उने यह अवसर दे दिया।
१०मई १८५७ को क्रान्ति का बिगुल बज गया
इसी बिगुल की गूँज ऐसी गूंजी की बितानियों को उखाड़ फेंका
बहुत ही विस्तृत और तथ्यपरक विश्लेषण किया है आपने 10 मई 1857 के हालातों का, बहुत सुंदर आलेख.
ReplyDeleteरामराम
राम -राम हार्दिक आभार ताऊ
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