Saturday, 25 May 2013

जिन्हें आज़ादी तो मिली थी, बिजली नहीं!

एक प्रयास ---------
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री निवास से 
महज़ 20 किलोमीटर दूर रायबरेली रोड पर एक गाँव है 
छिबऊखेड़ा.
लगभग 100 परिवार वाले इस गाँव के लोगों को 
इसी साल मई महीने में घर मे पंखों और बल्ब की रौशनी का सुख मिला है.
उन्होंने बताया, "हमारे गाँव में लगभग हर परिवार के पास चार-पांच साल पहले से मोबाइल फोन हैं. लेकिन हर कोई उन्हें चार्ज कराने तीन किलोमीटर दूर मोहनलालगंज तहसील में भेजता था. अब ऐसा नहीं होगा."राम अचल शहर में नौकरी करने जाते हैं और वर्षों से सिर्फ़ दफ़्तर में ही पंखे की हवा मिल पाती थी.

1947 में आज़ादी-------------------

गाँव में एक 100 किलोवाट का ट्रांसफार्मर लगा है 
जिससे इस गाँव में व्याप्त अँधेरा अब ग़ायब हो चुका है.
भारत को वर्ष 1947 में आज़ादी मिली थी जिसके बाद से 
उत्तर प्रदेश समेत सभी राज्यों के गांवों में बिजली पहुँचाने का काम शुरू हुआ था.
लेकिन किसी कारणवश राजधानी लखनऊ से 
महज़ आधे घंटे की दूरी पर स्थित इस गाँव पर किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया.
इसी वर्ष मई के पहले हफ्ते में जब गाँव में बिजलीकर्मी पहुंचे, 
तो तीन परिवारों ने गाँव के इकलौते मिठाई वाले को दस-दस किलो लड्डू बनाने के ऑर्डर दे डाले.

गर्मी-जाड़े की मार


मालती
मालती को वर्षों तक बिजली नहीं होने का अब भी मलाल है.

छिबऊखेड़ा के निवासी बताते हैं कि 
उनके लिए हर नया मौसम वर्षों तक पुरानी दिक्कतें लाता रहा.
मालती की शादी तय होने की कगार पर है.
उन्हें घरेलू काम-काज करना बेहद पसंद है, 
ख़ासतौर से साड़ी में फॉल लगाना.
लेकिन घर में बल्ब की रौशनी न होने की वजह से 
पिछले कई वर्षों से सूरज की रौशनी का ही सहारा था.
मालती ने बताया, "अब सब कुछ आसान हो गया है. 
रात को बल्ब की रौशनी में तीन-चार फॉल लगा कर काम ख़त्म कर लेती हूँ."
उन्हें इस बात का भी अफ़सोस है कि 
वर्षों तक हीटर या कूलर का सुख नहीं भोग सकीं.

बहराल अब गाँव में बिजली है और मूलरूप से खेती करने वाले 
यहाँ के निवासी अगली फ़सल और सिंचाई के मौसम का इंतज़ार कर रहे हैं.
घरों में नए मीटर लग चुके हैं और 
गाँव वालों ने पास की बाज़ार से बल्ब और पंखे लाने में देर नहीं की है.

वरदान


गाँव के बच्चों
गाँव के बच्चों के लिए बल्ब की रौशनी आज भी एक चमत्कार है.

गाँव के निवासियों के कहना है 
कि अभी तो बिजली 10 से 12 घंटों के लिए ही आ रही है लेकिन ये किसी वरदान से कम नहीं.
ज़्यादातर घरों में पंखे जड़े जा चुके हैं 
और मवेशियों को रखने की जगह में भी अब रौशनी है.

मुन्नालाल इसी गाँव में जन्मे और अपने मित्रों को 
गाँव का पता बताते समय 'बिना बिजली वाले गाँव' कहना नहीं भूलते थे.
अब ऐसा नहीं है. उन्होंने बताया, 
"गाँव में तो बाहर के लोग शादी करने में कतराते थे 
क्योंकि यहाँ उनकी बेटियों या दामादों को 
बिजली का सुख ही नहीं मिल सकता था. 
अब तो अपने बच्चों के भविष्य को लेकर थोड़े निश्चिन्त हो चुके हैं हम लोग."

फिलहाल तो छिबऊखेड़ा में बिजली लाने का श्रेय यहाँ की स्थानीय सांसद ले रहीं हैं.
हालांकि हकीकत यही है कि किसी भी 
राजनीतिक दल के पास इस बात का जवाब नहीं है बिजली पहुँचने में दशक दर दशक कैसे लग गए!

6 comments:

  1. छिबऊखेडा के लोगों को बधाईयां, राजनेता तो काम होने के बाद अपना ढोल पीटने पहूंच जाते हैं.

    रामराम.

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    1. हाँ जी बधाई देना में भी भूल गयी
      सभी बधाई के पात्र हैं ........
      राम -राम ताऊ

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  2. शुभम
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (27-05-2013) के :चर्चा मंच 1257: पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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  3. deepak tale andhera, chlo der ayad durust aayad

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