एक प्रयास ---------
बीजिंग.तिब्बत में भारतीय पांडुलिपियों के 50 हजार से ज्यादा ‘पेज’ संरक्षित हैं। इनमें से कुछ बहुमूल्य व दुर्लभ पांडुलिपियां संस्कृत में लिखी हैं। चीनी अधिकारियों ने बताया कि इन पांडुलिपियों को छांटने, फोटोकॉपी करने और पंजीकरण का काम 2006 में शुरू किया गया था। अब यह पूरा हो चुका है। ये पांडुलिपियां तिब्बती और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं में लिखी हैं।
बीजिंग.तिब्बत में भारतीय पांडुलिपियों के 50 हजार से ज्यादा ‘पेज’ संरक्षित हैं। इनमें से कुछ बहुमूल्य व दुर्लभ पांडुलिपियां संस्कृत में लिखी हैं। चीनी अधिकारियों ने बताया कि इन पांडुलिपियों को छांटने, फोटोकॉपी करने और पंजीकरण का काम 2006 में शुरू किया गया था। अब यह पूरा हो चुका है। ये पांडुलिपियां तिब्बती और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं में लिखी हैं।
क्षेत्र के पांडुलिपि संरक्षण कार्यालय के निदेशक सेवांग जिग्मे के मुताबिक, इनमें से कुछ ताड़ के पत्तों पर लिखीं दुर्लभ व बहुमूल्य पांडुलिपियां हैं। कुछ पेपर पर लिखी हैं। ताड़पत्र पांडुलिपियों का संबंध भारत से है। इन पर संस्कृत भाषा में बुद्ध ग्रंथ, प्राचीन भारतीय साहित्य और कोड लिखे हुए हैं।
सेवांग ने बताया कि तिब्बत अब दुनिया की उन जगहों में शामिल हो गया है जहां सबसे ज्यादा संपूर्ण संस्कृत ताड़पत्र पांडुलिपियां पंजीकृत हैं। सामग्री और लेखन शैली से माना जा रहा है कि तिब्बत में संरक्षित अधिकांश ताड़पत्र पांडुलिपियां 8वीं से 14वीं शताब्दी के बीच की हैं।
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, भारत में अनेक ताड़पत्र पांडुलिपियां संघर्ष, युद्ध और उमस भरे मौसम के कारण क्षतिग्रस्त हो गईं। लेकिन जिन पांडुलिपियों को तिब्बत लाया गया उनमें से अधिकतर अच्छी हालत में हैं।
इन्हें सहेजने का कार्य अति उत्तम है. लेकिन इनमे जो बाते लिखी हैं उन पर भी काम होना चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
राम -राम ताऊ
Deleteसच कहा आपने
धन्यवाद आपका
आभार राजेंद्र जी :)
ReplyDeleteइन्हें सहेजा गया..जानकर अच्छा लगा
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मि जी
Deleteबहुत अच्छी जानकारी दी अरुणा सखी ...तुम सच में बधाई की पात्र हो
ReplyDeleteधन्यवाद रमा सखी
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