Thursday, 2 May 2013

पाकिस्तान में रंजीत सिंह का संग्रहालय

एक प्रयास ---------
पाकिस्तानी सरकार तो संग्रहालयों पर कोई खास ध्यान नहीं देती है लेकिन लाहौर शहर में एक पुराना निजी संग्रहालय है जिसमें प्राचीन दौर से जुड़ी कई अनमोल वस्तुएँ रखी गई हैं.
फकीर खाना नाम के उस संग्रहालय की खास बात यह है कि उसमें सिख बादशाह महाराजा रंजीत सिंह के कार्यकाल के प्राचीन संग्रहणीय वस्तुओं को सुरक्षित किया गया है.
लाहौर के पुराने इलाके भाटी गेट की तंग गली में यह निजी संग्रहालय बनाया गया है और 52 वर्षीय फकीर सयद सैफुद्दीन के परिवार की तीन पीढ़ियों ने उसे संभाल कर रखा है.
लाहौर का अनोखा संग्रहालय
फकीर खाना संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1730 के बाद रखी गई थी जब उनका परिवार लाहौर में आकर आबाद हुआ था.
वे कहते हैं कि संग्रहालय में 18वीं, 19वीं और 20वीं शताब्दी की प्राचीन वस्तुएँ रखी गई हैं, जिनको उनके परिवार ने इकट्ठा की हैं.
लाहौर दरबार के दस्तावेज़'-----------
सयद सैफुद्दीन का कहना है कि, “हमारे पास पेन्टिंग का बड़ा सुंदर संकलन मौजूद है और प्राचीन दौर के कई वस्तुएँ हैं लेकिन खास बात है यह कि महाराजा रंजीत सिंह के लाहौर दरबार का पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित है.”
पाकिस्तान में आम तौर पर महाराजा रंजीत सिंह की कड़ी आलोचना होती रहती है लेकिन फकीर सयद सैफुद्दीन जैसे कुछ व्यक्ति हैं जो उनके दौर को शानदार और ऐतिहासिक करार देते हैं.
उन्होंने कहा, “महाराजा रंजीत सिंह का 40 वर्षीय कार्यकाल इस क्षेत्र और खासकर पंजाब के लिए बहुत शानदार था. वह एक धर्मनिर्पेक्ष व्यक्ति थे और वे खुद स्वार्थहीन शख्सित के मालिक थे.”
सैफ़ुद्दीन उनके बड़े प्रशंसक है और कहते हैं कि उन्होंने कभी भी अपने नाम का सिक्का नहीं बनाया हालांकि उस दौर में करीब सभी बादशाहों ने अपने नाम के सिक्के बनवाए थे.
“उन्होंने किले का निर्माण करवाया तो उसका नाम गोबिंद गढ़ रखा, एक पार्क बनवाया तो उसका राम बाग़ नाम रखा और लाहौर में जो पार्क बनवाया उसका नाम हुज़ूरी बाग़ रखा पैग़म्बर मोहम्मद के नाम पर.”
वे कहते हैं कि महाराजा रंतीज सिंह ने इस क्षेत्र की शिक्षा और विकास के लिए काफ़ी कोशिश की थी लेकिन स्थानीय ऐतिसाहकारों ने उनके साथ इंसाफ़ नहीं किया. उन्होंने जितना काम किया शायद ही किसी बादशाह ने किया होगा.
'रंजीत सिंह की दृष्टि'----------
सयद सैफुद्दीन के मुताबिक महाराजा रंजीत सिंह काफी आगे की सोचते थे और आजकल जो सरकारें फैसलें ले रही हैं, उन्होंने अपने दौर में ही ऐसे कदम उठाए थे.
अपने संग्रहालय में वह महाराजा रंजीत सिंह की दरबार के कीमती मवाद को किताबी शकल में लाने के लिए बड़ी तेजी से काम कर रहे थे और दस्तावेजों को टाईप करवा रहे थे. वह एक जुनून के साथ इस संग्रहालय की हिफाजत करते हैं.
जब मैंने उनसे पूछा कि अपनी निजी व्यस्तता के बीच फकीर खाना संग्रहालय की देखभाल करने का काम किस तरह पूरा करते हैं तो उन्होंने कहा, “यह इश्क और मोहब्बत से होता है.”
उन्होंने बताया कि फकीर खाना संग्रहालय उनके पूर्वजों की मोहब्बत है और वह इस मोहब्बत को अपनी आने वाली पीढ़ियों तक बढ़ाना चाहते हैं.
वह उम्मीद करते हैं कि उनकी औलादें इस राष्ट्रीय धरोहर को सुरक्षित बनाने के लिए काम करती रहेगी.
स्वार्थहीन थे रंजीत सिंह "उन्होंने किले का निर्माण करवाया तो उसका नाम गोबिंद गढ़ रखा, एक पार्क बनवाया तो उसका राम बाग नाम रखा और लाहौर में जो पार्क बनवाया उसका नाम हुजूरी बाग रखा पैगम्बर मोहम्मद के नाम पर." फकीर सयद सैफुद्दीन, संग्रहालय का मालिक
संग्रहालय की खास बात यह है कि इसमें सिख बादशाह रंजीत सिंह के दौर की प्राचीन वस्तुएँ रखी गई हैं.

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (03-05-2013) के "चमकती थी ये आँखें" (चर्चा मंच-1233) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सादर आभार शास्त्री जी .........

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