एक प्रयास ---------
कराची में स्थित इस सरकारी स्कूल पर तिरंगा बना है
पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची के बीचों-बीच एक इमारत पर नज़रें एकाएक ठहर जाती हैं क्योंकि वहाँ दिखाई देता है - भारत का झंडा.
ये झंडा दिखाई देता है रतन तलाव स्कूल की इमारत पर, जिसे देख कुछ पलों केलिए लगता है मानो आप भारत में हैं जहाँ किसी राष्ट्रभक्त ने अपने घर पर तिरंगा बनवा लिया है.
रतन तलाव स्कूल के मुख्य द्वार पर सीमेंट से भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना हुआ है जिसे ना धूप-बारिश-धूल मिटा पाई है ना बँटवारे का भूचाल.
तिरंगे के साथ हिंदी में दो शब्द भी लिखे दिखाई देते हैं - ------स्वराज भवन.
ये स्कूल एक सरकारी स्कूल है और वहाँ के बुज़ुर्ग अध्यापक ग़ुलाम रसूल बताते हैं कि इस सरकारी स्कूल में दो पारियों में कक्षाएँ चलती हैं जिनमें कम-से-कम सौ बच्चे पढ़ते हैं.
बदलावों के बीच भी एक तिरंगा झंडा आज भी एक इतिहास का एहसास दिलाता है. ये तिरंगा दोनों देशों के उस साझा इतिहास की धरोहर है.
इस भवन की आधारशिला बाबू राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी और स्कूल का उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया.
वहाँ दीवार पर लगी मिट्टी को कुरेदने पर दो तख़्तियाँ नज़र आईं जिन्हें साफ़ करने पर हिंदी में लिखावट मिलती है
इन पत्थरों की हालत देखकर ऐसा लगता है मानो इंसान तो नफ़रत के शिकार हुए ही हैं, भाषा और इमारतें भी इस नफ़रत से नहीं बच सकी हैं
कराची में स्थित इस सरकारी स्कूल पर तिरंगा बना है
पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची के बीचों-बीच एक इमारत पर नज़रें एकाएक ठहर जाती हैं क्योंकि वहाँ दिखाई देता है - भारत का झंडा.
ये झंडा दिखाई देता है रतन तलाव स्कूल की इमारत पर, जिसे देख कुछ पलों केलिए लगता है मानो आप भारत में हैं जहाँ किसी राष्ट्रभक्त ने अपने घर पर तिरंगा बनवा लिया है.
रतन तलाव स्कूल के मुख्य द्वार पर सीमेंट से भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना हुआ है जिसे ना धूप-बारिश-धूल मिटा पाई है ना बँटवारे का भूचाल.
तिरंगे के साथ हिंदी में दो शब्द भी लिखे दिखाई देते हैं - ------स्वराज भवन.
ये स्कूल एक सरकारी स्कूल है और वहाँ के बुज़ुर्ग अध्यापक ग़ुलाम रसूल बताते हैं कि इस सरकारी स्कूल में दो पारियों में कक्षाएँ चलती हैं जिनमें कम-से-कम सौ बच्चे पढ़ते हैं.
बदलावों के बीच भी एक तिरंगा झंडा आज भी एक इतिहास का एहसास दिलाता है. ये तिरंगा दोनों देशों के उस साझा इतिहास की धरोहर है.
इस भवन की आधारशिला बाबू राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी और स्कूल का उदघाटन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया.
वहाँ दीवार पर लगी मिट्टी को कुरेदने पर दो तख़्तियाँ नज़र आईं जिन्हें साफ़ करने पर हिंदी में लिखावट मिलती है
इन पत्थरों की हालत देखकर ऐसा लगता है मानो इंसान तो नफ़रत के शिकार हुए ही हैं, भाषा और इमारतें भी इस नफ़रत से नहीं बच सकी हैं
काश फऱिर से भारत-पाक एक देश बन जाता...!
ReplyDeleteकाश !!!
ReplyDeletekash ye kash hakikat ban jaye or mayank ji ki bat sahi ho jaye !!1
ReplyDeleteसच कहा गीता जी आपने .........
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